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      असमानता दूर करने के लिए आरक्षण अनिवार्य है लेकिन अपर्याप्त है                                                                                 - प्रो.योगेन्द्र यादव दुनिया भर के समाज में किसी न किसी असमानता को लेकर बात होती है। उस असमानता को कैसे ठीक किया जाए उस बारे में बहस होती है और होनी भी चाहिए। वैसी बहस हमारे समाज में भी होती है। लेकिन कई बार देखता हूँ , बड़े-बड़े   बुद्धिजीवी और संवेदनशील लोग भी जैसे ही आरक्षण का सवाल आता है अचानक उनके चेहरे के तेवर बदल जाते हैं। इस मुद्दे पर संतुलित और वस्तुनिष्ठ ढंग से सोचने की जरूरत है। हम कुछ आंकड़ों और उदाहरणों से अपनी बात रखेंगे। हम ऐसी दुनिया चाहते हैं जिसमें सभी को ‘ अवसर ’ की समानता हो। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि सभी लोग बराबर हों। मेरा ‘ अवसर ’ इस आधार पर तय न हो कि मेरा जन्म कहाँ हुआ है ? जन्म का संयोग यह तय न करे कि मैं ज़िंदगी में कहाँ पहुंचूंगा। संयोग से कोई लड़की पैदा हुई हो तो ऐसा न हो कि आपके लिए ये अमुक दरवाजें बंद हैं , इसके बारे में सोंचो ही मत। संयोग से मैं एक जाति में पैदा हुआ , एक धर्म में पैदा हुआ , एक